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#विषयगत दर्शन

यह दर्शन सार्वभौमिक सत्य या पूर्ण न्याय का पीछा नहीं करता है, बल्कि व्यक्तिगत व्यक्तिपरक अनुभवों, संदर्भों और स्थितियों की विशिष्टता को गहराई से पहचानता है, और उन पर आधारित नैतिक निर्णय लेता है। व्यक्तिगत अनुकूलन के समाज में, एक समान मानदंडों के बजाय विविध स्थितियों के अनुरूप जिम्मेदार विकल्पों की आवश्यकता होती है, इस प्रकार इस 'व्यक्तिपरक दर्शन' को एक महत्वपूर्ण नैतिक आधार बनाता है।

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